चले जा रहे हैं किनारे किनारे
कि शायद लहर कोई हमें भी पुकारे
सपनों की थाती हृदय से लगाये
सुख-दुःख सारे जिया में समाये
आँखों में उम्मीद की लौ जगाये
बैठे है द्वारे पे पलकें बिछाये
उलझी लटें कोई आकर संवारे //
कि शायद लहर कोई हमें भी पुकारे
चले जा रहे हैं किनारे किनारे
“आँखों में उम्मीद की लौ जगाये
बैठे है द्वारे पे पलकें बिछाये
उलझी लटें कोई आकर संवारे ”
मंजु जी , आपकी इन मनोहारी पंक्तियों की कोई बराबरी नहीं । आपने सरस्वती को सिद्ध कर लिया है । बहुत अच्छा लि्खा है और मुझसे भी यह लिखवा लिया है –
आँखों में उम्मीद की लौ जब तक जलती रहेगी ।
सुख-दुख से भरी यह दुनिया भी चलती रहेगी।
सूरज खुद द्वार पर चल करके आ ही जाएगा ।
जीवन की सभी उलझी लटें सुलझा जाएगा ॥
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सपनों की थाती हृदय से लगाये
सुख-दुःख सारे जिया में समाये
यह पंक्तियाँ बहुत पसंद आई ….खूबसूरत
Wonderfully crafted. Keep up the good work!!
सभी पाठक मित्रों का आभार, आप सबको नव वर्ष मंगलमय हो