मै एक पत्ता ….
शाख पर रहूँ ,
या शाख से अलग
क्या फर्क पड़ता है !
टूटा तो भी सूखा
न टूटता तो भी सूखता
मुझे तो अपनी जड़ से उखड़ना ही था !
हाँ, अगर किसी किताब के पन्ने मे,
दबा होता तो…
शायद –
कभी इतिहास की तरह
उल्टा पुल्टा जाता !!!!!!
किताब के पन्ने में दबे होना , एक सम्भावना को जन्म देता है । अच्छे लोगों के हाथ में किताब आती है ,तो उस पत्ते पर भी निगाह चली ही जाती है । हम लोग भी उसी तरह के पत्ते हैं । हमारा सौभाग्य है , अच्छे लोगों के सम्पर्क में आना या आने की उम्मीद बने रहना ।जीवन के लिए यह भी एक सम्बल है ।
“आपकी ये काव्य-पंक्तियाँ , नावक के तीर की तरह गहन प्रभाव छोड़ने वाली हैं।
सच कहा आपने यह संबल ही तो जीवन को गतिशील बनाये रखता है.. वरना तो “ज़िंदगी यदि तहर जाये तो अनूदित मृत्यु है, और जीने के लिए अविरल भटकना चाहता हूँ”
हाँ, अगर किसी किताब के पन्ने मे,
दबा होता तो…
शायद –
कभी इतिहास की तरह
उल्टा पुल्टा जाता …..
जो कभी ज़मीं से उठा दिल के करीब रखा होता
मेरी कब्र पे तेरी याद का दीया भी जल रहा होता
बहुत खूब हरकीरत जी, “जो कभी ज़मीं से उठा दिल के करीब रखा होता” दिल से करीब होना ही तो अहम है… उसी से तो ज़िंदगी के मायने बदल जाते हैं
पत्ते की यही किस्मत है …. गहन अभिव्यक्ति
पत्ते की पीड़ा को जब कवि के शब्द मिलें तो फर्क पड़ता है!