सपनों के पांखी नेऑंखें खोलीपर तौलेपरवाज भरीफ़िर यह जा वह जा.नापी सारी धरतीऔर गगन लांघसागर की छाती परलहरों सा बह निकला.उड़ चला हवा केसंग संग खुशबू बन करघुल गया साँस साजीवन मेंसपना मेराअपना बनकर !!
सपना मेरा !
March 23, 2012 by Manju Mishra
waah
short sweet fantastic !!
बहुत सुन्दर
बेहतर…
आपकी कविता की ये पंक्तियाँ रससिक्त सौन्दर्य समेटे हैं-
उड़ चला हवा के
संग संग खुशबू बन कर
घुल गया साँस सा
जीवन में
सपना मेरा
अपना बनकर !!
बस ये सपने अपने बने रहें ॥बहुत खूबसूरत भाव …
कुछ तारतम्यता की कमी के बाद भी अच्छी कविता है