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बधाई हो बधाई.. खुशी है छाई..
हिंदीसेवी मंजु मिश्रा को अमेरिकी राष्ट्रपति ने दिया लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी अनुयाई परिवार के लिए आज बहुत ही गर्व और खुशी का दिन है।
अमेरिका में हिंदी का प्रचार-प्रसार करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता एवं आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति की अमेरिकी इकाई की अध्यक्ष श्रीमती मंजु मिश्रा को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने “लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड” से सम्मानित किया है।
लखनऊ निवासी श्रीमती मंजु मिश्रा अमेरिका के कैलिफोर्निया में प्रवास कर रही हैं। अमेरिका में आप हिंदी के प्रचार प्रसार के साथ-साथ जरूरतमंदों की हर तरह से मदद करने को हर वक्त तत्पर रहती हैं। अमेरिका में कुछ मित्रों के साथ मिलकर वर्ष 2011 में श्रीमती मंजु मिश्रा ने विश्व हिंदी ज्योति नामक संस्था की शुरुआत की। यह संस्था अमेरिका के प्रवासी भारतीयों के बच्चों के साथ साथ अमेरिकी नागरिकों को भी हिंदी सिखाने का काम करती है। दो दशक से भी अधिक समय से कैलिफोर्निया में रह रहीं श्रीमती मंजु मिश्रा अमेरिका में अब तक हजारों भारतीय मूल के तथा गैर भारतीयों को हिंदी भाषा सिखा चुकी हैं।
अपने काम से यह संस्था आज काफी लोकप्रिय हो चुकी है। प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले हिंदी संवर्धन के कार्यक्रमों में भारतीय काउंसलेट भी सहयोग करता है। हिंदी की उल्लेखनीय सेवा के लिए आपको वर्ष 2014 में विश्व हिंदी सेवा सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। उनका सपना है कि अमेरिका के स्कूलों में भी छात्रों के लिए विदेशी भाषा के रूप में हिंदी एक विकल्प हो। अपने इस सपने को पूरा करने में भी वह लगातार प्रयासरत हैं।
मंजु मिश्रा का जीवन पूर्ण रूप से समाज सेवा एवं हिंदी की सेवा को समर्पित है। श्रीमती मंजु मिश्रा उत्तर प्रदेश मंडल ऑफ अमेरिका (उपमा) की बोर्ड मेम्बर हैं तथा भारत में चलने वाले संस्था के कार्यक्रमों का काम-काज देखती हैं। प्रवासी भारतीय नीलू गुप्ता द्वारा द्वारा गठित उपमा संस्था उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों की आर्थिक मदद सुनिश्चित करती है। इस संस्था के प्रोजेक्ट बुंदेलखंड रीजन के चित्रकूट एवं निसवारा में संचालित हो रहे हैं। एक प्रोजेक्ट साईधाम (फ़रीदाबाद- हरियाणा) में भी चल रहा है। कोरोना संकट के दौरान भी उत्तर प्रदेश मंडल ऑफ अमेरिका (उपमा) ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में जरूरतमंदों के लिए 20 लाख से अधिक रुपए भेजें। इस आर्थिक मदद से विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई गई। भोपाल की सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती माया विश्वकर्मा की संस्था सुकर्मा को भी श्रीमती मंजु मिश्रा ने आई.सी. सी ट्राई वैली के माध्यम से मास्क सेनीटाइजर और ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के लिए आर्थिक मदद उपलब्ध कराई थी। कोरोना संकट के दौरान उपमा के किए गए प्रयासों की अभी हाल ही में गौरव अवस्थी द्वारा संकलित और संपादित कोरोना योद्धाओं के काम पर केंद्रित पुस्तक “ताकि सनद रहे” में भी प्रमुखता से चर्चा हुई है। नारिका नाम की संस्था जो सैन फ़्रैन्सिस्को बे एरिया में घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए काम करती है उसके साथ बोर्ड मेम्बर के रूप में जुड़ कर आप भारतीय महिलाओं की मदद करने का काम भी कई वर्षों से कर रही हैं ।
श्रीमती मंजु मिश्रा को हिंदी साहित्य में भी महारत हासिल है। उनका एक काव्य संग्रह “जिंदगी यूं तो”प्रकाशित हो चुका है। 50 से अधिक संग्रहों एवं विभिन्न ई-पत्रिकाओं में भी आपकी कविता और कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं।
आपकी मातृभाषा और सामाजिक सेवा को देखते हुए ही आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति की ओर से वर्ष 2017 में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी युगप्रेरक सम्मान से रायबरेली के भव्य समारोह में सम्मानित किया गया था। तभी से आप मातृभाषा हिंदी के साथ-साथ आचार्य द्विवेदी स्मृति संरक्षण अभियान को भी अपना संरक्षण-सहयोग-स्नेह प्रदान कर रही हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन द्वारा लाइव टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त होने पर श्रीमती मंजु मिश्रा को आचार्य द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति की भारत इकाई एवं हिंदी प्रेमियों की तरफ से बहुत-बहुत बधाई। आप का सानिध्य पाकर हम सब गौरवान्वित हैं। आप ऐसे ही सामाजिक कार्य और सात समंदर पार मातृभाषा हिंदी को पुष्पित पल्लवित करती रहें, यही सच्ची राष्ट्र सेवा है। यही राष्ट्रीय धर्म है। यही भारतीय समाज का मर्म है।
हम सब हिंदी प्रेमी भी आपके स्वास्थ्य सार्थक और दीर्घ जीवन की कामना करते हैं।
∆ गौरव अवस्थी “आशीष”
रायबरेली/उन्नाव
91-9415-034-340
प्रवासी भारतीय मंजु मिश्रा को अमेरिका का लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड
http://www.jantajanardan.com/NewsDetails/42011/life-time-achivments-award-america.htm
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बेटियाँ तो हैं धूप के टुकड़े सी इन्हें सहेजो बेटियाँ तो हैं ख़ुशियों का बिरवा प्रेम से सींचो मरहम सी शीतल चाँदनी हैं काली रातों में बेटियाँ जैसे वर्षा के बाद खिली सुहानी धूप दुख समेट खुशियाँ बिखेरेंगी प्यारी बेटियाँ - मंजु मिश्रा
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माँ के कलेजे की धड़कन हैं बेटियाँ बाप के ग़ुरूर का परचम हैं बेटियाँ जीवन की धूप में छाँव सी हैं बेटियाँ थके हुए मन को ठाँव सी हैं बेटियाँ लौटते परदेसी को गाँव सी हैं बेटियाँ रिश्तों में गुड़ की मिठास सी हैं बेटियाँ काँटों के बीच में गुलाब सी है बेटियाँ आसमाँ में सूरज औ चाँद सी हैं बेटियाँ बार बार देखो वो, ख़्वाब सी हैं बेटियाँ सागर को चीरती हैं दुनिया को जीतती हैं कहने को नाज़ुक पर बड़े बड़े काम करें कहीं कल्पना बछेंद्री सुनीता हैं बेटियाँ... - मंजु मिश्रा
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हम देश से दूर लोग अपने बच्चों को आखिर क्यों हिंदी सिखाना चाहते हैं, या फिर उनको भारतीय संस्कृति से क्यों जोड़े रखना चाहते हैं ? अक्सर इस बात पर चर्चा होती है. कभी सार्थक, सकारात्मक तो कभी नकारात्मक या व्यंग्यात्मक भी। एक दिन मेरे एक मित्र ने दूसरे मित्र से पूछा, तुम लोग ये हिंदी हिंदी का इतना शोर करते रहते हो, इससे फायदा क्या होगा। अरे भाई अगर आपने थोड़ी बहुत टूटी फूटी हिंदी सिखा भी ली बच्चों को तो आप या आपके बच्चे क्या उखाड़ लेंगे ? मैं तो सन्न रह गई इस बेतुके अंदाज पर और इस बेतुके सवाल पर
अरे भाई….. अब इन्हें कौन समझाए कि बच्चे हिंदी सीख कर कुछ उखाड़ते नहीं हैं, बल्कि अपने माँ-बाप की जड़ों से, उन जड़ों के माध्यम से अपनी मूल सभ्यता से, भाषा से जुड़ते हैं जो उनको उन सब से चीजों से जोड़ती है जो व्यक्ति, स्थान, सभ्यता एवं संस्कृति उनके माँ बाप के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। मतलब यह कि माँ-बाप और परिवार के साथ संबंधों में थोड़ी और प्रगाढ़ता। उदाहरण के लिए… मेरी बेटी जो अमेरिका में ही जन्मी है यहीं पली बढ़ी है, ठीकठाक हिंदी बोलती है… उसे मम्मी के लिए जब कुछ ख़ास करना होता है तो मेरे पास आ कर हिंदी में बात करती है, हिंदी फिल्म देखने के पेशकश करती है या फिर मुकेश के गाने लगाती है…. क्यों ? क्योंकि उसे पता है मम्मी का मन अपनी भाषा से, अपनी उन जड़ों से जुड़ा है जो उन से दूर हैं।
हमारी मजबूरी है कि यहाँ हमारे काम काज की भाषा, गैर हिंदी भाषी लोगों के साथ बातचीत की भाषा अंग्रेजी है लेकिन हमारी जबान, वो तो हिंदी और हिंदी के मुहावरे, कहानी, ठेठ स्थानीय उच्चारण… सब बहुत मिस करती है। हम सौभाग्यशाली हैं कि सैनफ्रांसिस्को बे एरिया में भारतीयों की बहुतायत होने के कारण हमें ये सब खूब मिलता है।
वापस आती हूँ मुद्दे पर .. जहाँ से बात शुरू की थी। हमारे बच्चे अपनी मूल भाषा (हिंदी) सीख कर और कुछ कर पाएँ या न कर पाएँ लेकिन अपनी जड़ों से जुड़ने का सुखद अहसास ज़रूर पाते हैं। जब वे उन चीजों को, बातों को, लोगों को, जो उनके माँ बाप के लिए महत्त्वपूर्ण हैं अच्छी तरह से समझ सकते हैं उनके साथ घुल मिल कर उन सभी का आनंद उठा सकते हैं तो जो एक रिश्ता एक प्यार का अटूट बंधन तैयार होता है उसे यूँ ही बयान नहीं किया जा सकता उसको समझने के लिए रिश्तों को और उनकी अहमियत को समझना ज़रुरी होता है, हाँ ये बात तो आपको ही तय करनी होगी कि इस सबकी आपके लिए अहमियत है या नहीं और यदि है तो क्या और कितनी…
हिंदी के प्रति लगाव के माध्यम से हम एक बीज बोते हैं, अपनी संस्कृति का, सभ्यता का, हमारी जड़ों से स्नेह का और उम्मीद करते हैं कि यह एक बड़ा घना छायादार पेड़ बनेगा एक दिन और अपने जैसे कई और पेड़ों का निर्माण करेगा…
अभी के लिये बस इतना ही, हिंदी दिवस की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ
सादर
मंजु
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टूटा दर्पण
हज़ार टुकड़ों में
मन बिखरा
- मंजु मिश्रा
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बँटवारे में
बँटते माँ बाप भी
फूटी क़िस्मत
- मंजु मिश्रा
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गोल रोटी सा
चाँद देख मचली
भूखी मुनिया
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