Archive for the ‘माँ – बेटी और माँ’ Category
मेरी बेटी…
Posted in माँ - बेटी और माँ on June 21, 2018| 1 Comment »
इनसान हैं इनसान बन जीने दो …
Posted in माँ - बेटी और माँ, मेरी पसंद, tagged कविता, बेटी, मेरी, मेरी हिंदी कविता, मैं, समाज, हिंदी कविता, हिन्दी on March 24, 2017| 3 Comments »
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मुक्त करो पंख मेरे पिजरे को खोल दो
मेरे सपनो से जरा पहरा हटाओ तो …
आसमाँ को छू के मैं तो तारे तोड़ लाऊंगी
एक बार प्यार से हौसला बढाओ तो …
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बेटों से नहीं है कम बेटी किसी बात में
सुख हो या दुःख सदा रहती हैं साथ में
वंश सिर्फ बेटे ही चलाएंगे न सोचना
भला इंदिरा थी कहाँ कम किसी बात में
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बेटियों को बेटियां ही मानो नहीं देवियाँ
पत्थर की मूरत बनाओ नहीं बेटियां
इनसान हैं इनसान बन जीने दो …
हंसने दो रोने दो गाने मुस्कुराने दो
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एक परी थी…..
Posted in माँ - बेटी और माँ on February 4, 2016| 5 Comments »
एक परी थी…..
छोटे छोटे सपने बुनकर
आँखों में पहना देती थी
उसकी बातों मे जादू था
उसके हाथों में जादू था,
बची हुयी कतरन से भी वो
गुड़िया नयी बना देती थी
एक परी थी…..
मैं रोऊँ वो उसके पहले
चेहरे पे मुस्कान सजा के
चूमचाम कर फूंक मार कर
मेरी चोट भुला देती थी
अपनी प्यारी बातों से वो
मेरा मन बहला देती थी
एक परी थी…..
एक रोज़ फिर आंधी आई
और – परी को उड़ा ले गयी
मेरे अंदर की बच्ची को
जीवन भर की सजा दे गयी
रोज रात को ढूंढ रहीं हूँ
सपना सपना तारे तारे
कोई तो हो एक बार जो
मुझसे मेरी परी मिला दे
एक परी थी…..
मेरी माँ मेरी परी… आज एक साल और बीत गया… Miss you mom .. Love you
माँ की याद !!
Posted in माँ - बेटी और माँ on December 20, 2015| 1 Comment »
माँ की दुआ
बंधीं रहती है
ताबीज सी दिल में
बच्चों के साथ
वो चाहे कहीं भी हो
जब जरा मन उदास हुआ
इक प्यार भरी
थपकी सी लगा देती है
माँ की याद !!
माँ
Posted in माँ - बेटी और माँ on May 11, 2014| 4 Comments »
माँ
तुम्हारे होने का अर्थ है
बचपन से एक रिश्ता
जो कभी ख़त्म नहीं होता
जब तक तुम होती हो, हम बच्चे ही होते हैं
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लेकिन तुम्हारे जाते ही
छिन जाता है हमारा बचपन
और हम अचानक ही बड़े हो जाते हैं, फिर
तुम्हारे होने न होने के बीच का फर्क जान पाते हैं
Miss you माँ ….
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बेटियाँ ….
Posted in माँ - बेटी और माँ, सामाजिक सरोकार, tagged बेटियाँ on April 25, 2014| 2 Comments »
एक सवाल हालात से, समाज से …
आखिर क्या कमी पड़ जाती है हमारे प्यार में, बेटियो के प्यारे से रिश्ते में “क्यूँ कमतर हैं बेटियाँ ?” सबकी न सही पर समाज के काफी बड़े तबके की सोच आज भी यही है, बेटों की चाह मे न जाने कितनी बेटियाँ जन्म से पहले ही मौत की गोद मे सुला दी जाती हैं ….
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माँ के कलेजे की
धड़कन हैं बेटियाँ
बाप के गुरूर का
परचम हैं बेटियां
जीवन की धूप में
छाँव सी हैं बेटियाँ
सुख हो या दुःख
बांटती हैं बेटियाँ
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यूँ तो बदली है दुनिया
बदला समाज भी, पर
सच पूछो आज भी
बेटों की चाह में
मरती हैं बेटियाँ
जन्म भी गयीं तो
डरती है सांस-सांस
इंसानों के जंगल में
जब तब बेदर्दी से
लुटती हैं बेटियाँ
.
नाजुक से कन्धों पे
बड़े बड़े काम ले
कहीं कल्पना बछेंद्री
सुनीता हैं बेटियाँ
आसमां को छूती हैं
सागर को चीरती हैं
दुनिया को जीतती हैं
जीवन को रोपती हैं
करती हैं साबित
खुद को हमेशा
फिर भी समाज में
क्यूँ कमतर हैं बेटियाँ ?
तूने मुझे मुकम्मल कर दिया …..
Posted in माँ - बेटी और माँ on October 3, 2013| 11 Comments »
मैं बन गयी
एक भरा पूरा दरख़्त
तेरी ममता की छाँव तले
तूने मुझे माँ बना दिया
अपने आने से
मुझे सूरज बना दिया
अपनी चमक से
मुझे फूल बना दिया
अपनी महक से
मुझे सपना बना दिया
अपने ख्याल से
मेरी धडकनों को साँसे दे दीं
अपनी साँसों से
मुझे पूरा कर दिया
मेरे वजूद का हिस्सा बनकर
मैं तो बस एक बूँद थी
तूने मुझे दरिया कर दिया
मेरी बेटी
तूने मुझे मुकम्मल कर दिया
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नन्ही सी चुनमुन !!
Posted in माँ - बेटी और माँ on January 22, 2013| 9 Comments »
इला की कविता – “BABY RAIN”
Posted in माँ - बेटी और माँ on April 2, 2012| 10 Comments »
http://patang-ki-udan.blogspot.in/
मदर्स डे के अवसर पर माँ की ओर से बेटी को धन्यवाद !
Posted in माँ - बेटी और माँ on May 6, 2011| 17 Comments »