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Archive for the ‘अनुभूतियाँ’ Category


तेरे सपनों की तलाशी में 

मेरी भी शिनाख्त हो जाएगी 

मिरे वजूद को पहचान लिया जायेगा 

तेरी धडक़नों की बेतरतीबी से 

यही तो इश्क है … 

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रिश्ते जिन्दा रहें 

उन की सांस चलती रहे 

इसके लिए जरुरी है कि  

बातचीत होती रहे 

बातचीत का न होना 

जैसे संबंधों की 

ऑक्सीजन सप्लाई का 

ठप्प हो जाना 

वैसे भी सच कहूं तो 

मुझसे बहुत देर तक 

चुप नहीं रहा जाता 

और तुम्हारा चुप रहना 

सहा भी नहीं जाता 

तो यह तय रहा कि 

भला या बुरा कुछ भी कहें 

मगर चुप न रहें 

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कच्चे से धागे
औ बंधन अटूट 
उम्र भर का

-:-

दुआ बनके
सजती कलाई में
रेशमी डोर

-:-

रेशमी धागे

हैं कच्चे, पर बाँधें

बंधन  सच्चे

-:-

प्यार  बाँधा है   

राखी में लपेट के 

भाई के हाथ 

-:-

कच्चे धागों ने 

बाँध दिए हैं मन

उम्र भर को    

-:-

भाई का प्यार
बहन का दुलार
राखी त्योहार

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-:-

मैं चिराग़ हूँ उम्मीद का मुझे देर तक जलाए रखना
हवाएँ तो होंगी तुम हथेलियों की ओट बनाए रखना

-:-

तूफ़ान तो होंगे ज़माने में बहुत मैं डर भी जाऊँ शायद
तू मुझे थाम के मेरे क़दमों को धरती पे जमाये रखना

-:-

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चिड़िया  …. 

तुम सुन रही हो न 

घोंसले की 

दहलीज के बाहर 

आँधियाँ ही आँधियाँ हैं 

हर तरफ 

*

नोचने को पर तुम्हारे

उड़ रहे हैं 

गिद्ध ही गिद्ध यहाँ  

हर तरफ 

**

पैने करने होंगे 

अपने ही नाख़ून तुमको 

कोई नहीं आएगा बचाने  

मुखौटों के अंदर 

बस कायरों की 

भीड़ ही भीड़ है यहाँ 

हर तरफ 

***

सरे आम होने वाले अपराधों को लोग कैसे तमाशाई बनकर देखते रहते हैं, आखिर हमे हो क्या गया है… हम जिन्दा भी हैं या नहीं, आत्म विश्लेषण की बहुत जरूरत है 

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*

मन के 

आँगन की 

दीवारों पर… 

न जाने कहाँ कहाँ 

कौन कौन सी दरार ढूंढ कर 

उग आती हैं यादें 

और धीरे धीरे 

पीपल सी जड़ें जमा लेती हैं 

फिर एक दिन 

ढह जाती है आँगन की दीवार 

और यादें दफ़न हो जाती हैं 

अपने ही बोझ तले 

*

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.

बरस महीने दिन 

छोटे छोटे होते 

अदृश्य ही हो जाते हैं 

और मैं 

बैठी रहती हूँ 

अभी भी 

उनको उँगलियों पे 

गिनते हुए 

बार बार 

हिसाब लगाती हूँ 

मगर

जिन्दगी का गणित है कि

सही बैठता ही नहीं

.

.

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-:-

देखो…

तुम रोना मत 

मेरे घर की  दीवारें

कच्ची हैं 

तुम्हारे आंसुओं का बोझ 

ये सह नहीं पाएंगी 

-:-

वो तो

महलों की दीवारें होती हैं 

जो न जाने कैसे

अपने अंदर 

इतनी सिसकियाँ

समेटे रहती हैं और 

फिर भी

सर ऊंचा करके

खड़ी रहती हैं 

-:-

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-:-

रिश्ते

मरते नहीं 

क़त्ल किये जाते हैं 

कभी कुछ हादसे हो जाते हैं 

जो घातक बन जाते हैं 

तो कभी कुछ 

सोच समझ कर 

ठन्डे दिमाग से

योजनाबद्ध तरीके से 

क़त्ल किये जाते हैं 

मगर

ये सच है कि 

रिश्ते मरते नहीं 

क़त्ल किये जाते हैं  !!

-:-

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*

जानती हूँ

तुम

अटोगे नहीं

मेरी मुट्ठी में…

तुम तो आकाश हो

सागर हो, धरती हो

सब कुछ हो

बस

अगर नहीं हो

तो तुम  

 मेरे ‘तुम’ नहीं हो

*

अक्सर 

आते हो 

ख्वाबों की तरह 

सिमटते हो 

पलकों में 

और फिर 

न जाने कब 

ग़ुम  हो जाते हो 

जैसे 

झर गयी हो रेत 

मुट्ठी से ! 

*

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