रिश्ते,
बुनी हुयी चादर
एक धागा टूटा
बस उधड़ गए
जो भी कहा दिल से,
तर्क की कसौटी पर
मत परखो !
देहरी के दिए की
लौ कांपती है,
बाहर आंधियां तेज हैं
हमेशा अनबन सी रही,
आँखें और होठ
अलग-अलग राग अलापते रहे
हँसी को चलना सिखाओ
होठों से आँखों तक !
ज़िंदगी हसेंगी
चाँद तारे
मिलें न मिलें
प्यार से सींचो
नफरत के पेड़
मोहब्बत खिलेगी
पहल तो करो !
दूरियों का जंगल
विलीन हो जायेगा
सारी क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगीं …गहन और गूढ़ अर्थ लिए हुए
आपकी क्षणिकाएँ सूत्रात्मक शैली में बहुत कुछ कर जाती हैं । रिश्तों की वास्तविकता आपने बखूबी बताई है । मन की दुविधा का आपकी इन पंक्तियों से बढ़िया उदाहरण क्या हो सकता है-हमेशा अनबन सी रही,
आँखें और होठ
अलग-अलग राग अलापते रहे
और पहल करने पर दूरियों का जंगल विलीन हो जाएगा ! बहुत खूब कहा आपने ।और यह क्षणिका तो लाजवाब है-
प्यार से सींचो
नफरत के पेड़
मोहब्बत खिलेगी ।
दिल को छू लेने वाली लेखनी को प्रणाम!
धन्यवाद रामेश्वर जी और संगीता जी, आप लोगों का प्रोत्साहन प्रेरणा देता है
Vert nice post …about delicacy of the relationship…….every line is beautyful….
मेरी हिंदी थोडी कच्ची है लेकीन
जो भी कहा दिल से,
तर्क की कसौटी पर
मत परखो !
ये बहुत अच्छा लगा , जैसे गीता दत्त का गाना सुनो तो दिल को छु ले ता है .
मस्तिष्क के अंदर दिल बंद करने वालोन्के लिये नाही है ये .
शायद हंसी को हाथ पकड ये दरवाजे खोलने पडे
Thanks Sunil !! Wonderful 🙂
प्यार से सींचो
नफरत के पेड़
मोहब्बत खिलेगी ।
बहुत अच्छा लगा| धन्यवाद|
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ …शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html
गज़ब की प्रस्तुति……………गूढार्थ लिये।
जो भी कहा दिल से,
तर्क की कसौटी पर
मत परखो !
wah.kitna sunder likhe hain.