मत बता मुझको, मेरी ख़ता क्या हैबस फ़ैसला सुना दे मेरी सज़ा क्या है.यादों के ख्वाब बसते थे सांसों की तरह दिल मेंअब याद न ख्वाब, फिर तू ही बता रहा क्या हैमेरी धड़कन भी अब कुछ और सी धड़कती हैवो बात न साथ, फिर जीने का आसरा क्या हैहम तमाम उम्र, नज़रें बिछाए बैठे थे, ख़ुशीआई, तो ग़ैर के घर, यही चलन है, नया क्या हैबता दूँ, तो नज़र लग जाती है, न पूछमुझसे कि मेरी आखिरी ख्वाहिश क्या हैमेरी कुछ रचनाएँ यहाँ भी देखें …http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/shubh_deepawali/2010/manju_mishra.htm
यादों के ख्वाब, सांसों की तरह
March 17, 2011 by Manju Mishra
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.03.2011) को “चर्चा मंच” पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये……”ॐ साई राम” at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
खूबसूरत गज़ल …दिल के करीब लगी …
मन्जु जी आपकी यह पूरी कविता बहुत गहरी व्यथा से भीगी हुई लगी ।
आपने सही कहा है , जीवन यादों और ख़्वाबों से ताकता पाता है ये दोनों ही न रहें तो सारा आकर्षण और जिजीविषा दम तोड़ देते हैं। ये पंक्तिया आपकी कलम का नायाब नमूना हैं-
यादों के ख्वाब बसते थे सांसों की तरह दिल में
अब याद न ख्वाब, फिर तू ही बता रहा क्या है
बेहद उम्दा रचना…………आपको और आपके पूरे परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति….
“बता दूँ, तो नज़र लग जाती है, न पूछ
मुझसे कि मेरी आखिरी ख्वाहिश क्या है”
लेकिन फिर भी मन करता है कि कोई पूछे कि तेरी ख्वाहिश क्या है…!!