जीवन भर का साथ निभाने का वादा करने वाले जब एक दूसरे के विरुद्ध खड़े होते हैं तो एक दूसरे के घाव बड़ी बेरहमी से कुरेदते हैं, वो भी सरे आम… मेरा मानना है कि इस दुनिया में सुनने वाले और सुनकर चर्चा करने वाले लोग हर जगह हैं… इस बात की क्या गारंटी है कि उन सुनने वालों में वो अवसरवादी नहीं होंगे, जो इसके सामने इसकी जैसी और उसके सामने उसकी जैसी करने में प्रवीण होते हैं. ऐसे लोग हर जगह, हर हालात में अपना स्वार्थ सिद्ध करने से नहीं चूकते. ऐसे लोग किसी भी संवेदनशील प्रकरण को कुछ और नहीं तो किटी पार्टी या काफी टेबल पर मजेदार बातचीत का विषय तो बना ही देते हैं. तो ऐसे हालात में क्या यह बेहतर नहीं होगा कि ख़ुद को थोड़ा समझदार बनाते हुये दोनों ही पक्ष एक दूसरे पर कीचड़ उछालने से परहेज करें…. और अलग-अलग रास्ते चुनने का फ़ैसला, थोड़ी परिपक्वता दिखा कर शांतिपूर्ण ढंग से करने की कोशिश करें. इसी विषय पर कुछ छोटी छोटी रचनाएँ…
तमाशा बनती भावनाएं
..
जब
सात जन्मों के साथीखड़े हो जाते हैंएक दूसरे के विरुद्धतब छिड़ता है एक युद्धहथियारों की तरहउछाली जाती हैंभावनाएं…और बन जाती हैंतमाशा सरे आम
..पोस्ट मार्टम
..क्यूँ नहींमरे हुये रिश्तों कोबस एक बार में दफनाकरमौन-शोक मना लेते हैं लोगआखिर क्यूँकभी साथ साथ जिएप्यार और संवेदना के क्षणों कापोस्ट मार्टम करने पर उतर आते हैं लोग
..किस बात का झगड़ा..रिश्ते जब सड़ते हैं
पल पल मरते हैं तोबहुत बदसूरत हो जाते हैं
परऐसे मेंक्या ये जरूरी हैकि एक दूसरे कोलोगों के बीचचौराहे पर नंगा किया जाये..क्यूँ नहीं समझ पाते हैं लोगकि, जब प्यार ही ख़त्म हो गयातो किस बात का झगडा औरकिस बात का दंगा किया जाये
bahut umdaa ,mazaa aayaa
सटीक ,प्रासंगिक और सार्थक रचना
मंजू जी ,
बहुत ही गहरी बात कह दी आपने !
आपकी कही बात को कि लोग दंगा क्यों करते हैं …मैं आगे बढ़ाती हूँ ………
रिश्ते जब मरते हैं …..
उनका कारण भी है होता
वैसा ही रिश्ता
कहीं और पनप रहा है होता
इसी लिए …
वहाँ रिश्ता खत्म है होता
क्यों जो इन्सान
दूसरी तरफ है बोता !
आजका इन्सान दोगला हो गया है …..वह वफादारी कम निभाता है ..यहाँ उसे फ़ायदा दिखाई दे वहाँ रिश्ता बनाता है !
हरदीप
Behtarin rachna.
रिश्तों की नज़ाकत को सरेआम न करने की सलाह देती क्षणिकाएं … गहन भाव लिए हुये
मंजू जी नमस्कार
बेहतरीन अभिव्यक्ति …
साहिर साहब की लिखी पंक्तियाँ याद आ गईं
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये ज़लवे पराये हैं
मेरे हमराह भी रुस्वाइयाँ हैं मेरे मांजी की
तुम्हारे साथ भी गुजरीं हुई यादों के साये हैं
तारूफ रोग बन जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
तारूफ रोग बन जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
दिव्यांश जी.. बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ हैं… इनको यहाँ पर उद्दृत करने के लिए धन्यवाद….इन चार लाइनों में साहिर साहब ने रिश्तों को सलीके से जीने का पूरा जीवन दर्शन समझा दिया… लेकिन इतने सालों तक इसको गुनगुनाने के बाद भी लोग इस पर अमल करना नहीं सीख पाये…
सादर
मंजु
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 16-02-2012 को यहाँ भी है
…नयी पुरानी हलचल में आज…हम भी गुजरे जमाने हुये .
बेहतरीन रचना।
सादर
बहुत बहुत बढ़िया..
एक एक पंक्ति दिल को छू गयी..
सटीक रचना…
सादर.
बेहतरीन सुंदर रचना, बहुत अच्छी प्रस्तुति,..
MY NEW POST …कामयाबी…
हथियारों की तरह
उछाली जाती हैं
भावनाएं…
बहुत खुबसूरत रचनाएं हैं…
हार्दिक बधाई..
बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है।
sunder panktiyan,
jab riste hi khatm to kis bat ka jhagada,
तारूफ रोग बन जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
One of my favorite movie. In school every year I did that.
bhut sundr rachna
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी भावनात्मक रचना हे,मंजूजी.
क्या येह सम्भव नही कि बात एक तरफा ही रहे, हुम दूसरे की बातो को तूल ही न दे
,
और वक्त के साथ -साथ रिश्तो के सामान्य होने का विकल्प भी देखे.
इंसानो को बदल्ते भी देखा हे,
थोडा वक्त तो लग जाता हे
अनुभव की बात हे………