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देश मेरी तुम्हारी या किसी की जागीर नहीं है
देश कागज पर कोई खींचीं हुई लकीर नहीं है
देश न ही कुछ मुट्ठी भर लोगों की विरासत है
देश न ही केवल और केवल बस सियासत है
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देश वो मिटटी है जो गढ़ती है हमें रचती है
देश वो खुश्बू है जो रग – रग में बसती है
देश वो नाम है जो दुनिया में नाम देता है
देश ही तो है जो एक पहचान हमें देता है
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देश की माटी को अब यूँ न लजाओ
देश के नाम पर अपनों का ही खूं न बहाओ
देश के नाम पर अपने मतलब न सधाओ
देश को देश ही रहने दो खिलौना न बनाओ
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सच लिखा है देश ही हमें बनाता है रचता है … देश है तो हम रहेंगे …
सुन्दर रचना है …
बहुत बहुत धन्यवाद !
भावपूर्ण कविता।
धन्यवाद !
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विद्यार्थी जी को याद करते हुए ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है…. आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी….. आभार…