. . इंसानों की इस बस्ती में इंसान नहीं ढूँढ़े मिलता खुल कर नंगा नाच करे हर रोज यहाँ पर दानवता अब घड़ा पाप का भर आया अब दूर नहीं तांडव शिव का आखिर कब तक रोएगी सिसक-सिसक कर मानवता इक लहर उठेगी आँधी सी परलय बन कर छा जाएगी हर जोर जुलुम के दानव को बस कच्चा ही खा जाएगी ईश्वर का क्रोध विकट होगा अब कोई रोक नहीं सकता आखिर कब तक रोएगी सिसक सिसक कर मानवता . .
आखिर कब तक रोएगी सिसक-सिसक कर मानवता…
May 31, 2023 by Manju Mishra
जब किसी चीज़ की अति हो जाती है तो कहर टूटता है । होगा ऐसा ही होगा ।
धन्यवाद संगीता जी! सच अब इन्तेहा हो गई है, आँखों में आँसू आ जाते हैं और बहुत बेबसी सी महसूस होती है
आपकी लिखी रचना शुकवार 02 जून 2023 को साझा की गई है ,
पांच लिंकों का आनंद पर…
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
Excellent abhivyakti,
Thank you!