कल मैं जब मेरी नई दोस्त से यानि कि जस्सी से पहली बार मिली तो हम अजनबी थे, लेकिन जब हम अलग हुए तो हमारे बीच एक अनकहा लेकिन मजबूत बंधन था जो हमारे मिलने के पहले से ही शायद हमारे बीच था बस हमें एक दूसरे को ढूँढऩा था जिसका माध्यम बनी हमारी एक प्यारी सी दोस्त मंजुला मायर गुप्ता जी ।
हमारे बीच, हमारे स्वभाव में, हमारी ज़िंदगी में कितना कुछ एक जैसा था… जो बस इत्तेफ़ाक था लेकिन बिलकुल अविश्वसनीय । दो अनजान लोगों के बीच इतना कुछ इतना एक जैसा कैसे हो सकता है? लेकिन यह मैंने कल ही जाना कि ऐसा सच में है और ऐसा हो सकता है । धन्यवाद ईश्वर का … एक बहुत प्यारी दोस्त से मिलवाने के लिए…
हमारी कुछ पंक्तियाँ एक-दूसरे के लिए छोटी छोटी कविताओं के रूप में
जिंदगी में
कभी कभी
कुछ लोग मिलते हैं
मिलते ही अपने से लगते हैं
उनसे रक्त सम्बन्ध नहीं होते
पर मन के तार स्वयं ही जुड़ते हैं
ऐसे लोग जन्मों के अपने लगते हैं
-manju
Manju, here is what your poem inspired:
A piece of you
A part of me
Reached out
To become whole
When we met…
Recognition
Of a bond
Forgotten
But alive
Rose from the heart
In a sweet moment of renewal.
~Jessi
Leave a comment