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Posts Tagged ‘hindi’


जलती है
सुलगती है जब तक
हाथों से ओठों के बीच
खेलती है तब तक
जरा सी आग ठंडी क्या पड़ी
मसली गयी पैरों तले
हश्र एक सा
करता है ये मर्द
औरत हो या बीड़ी ….
लेकिन बस
अब बहुत हो गया
अब यह
समझना ही होगा
कि
समाज के सीने में
पलता हुआ कैंसर
अगर ख़त्म करना है तो
औरत को
बीड़ी होने से बचाना होगा
नहीं तो ये दर्द, ये तकलीफ
ये  घुटन सब तबाह कर देगा
फिर …
न समाज रहेगा
न मर्द !

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कल मैं जब मेरी नई दोस्त से यानि कि जस्सी से पहली बार मिली तो हम अजनबी थे, लेकिन जब हम अलग हुए तो हमारे बीच एक अनकहा लेकिन मजबूत बंधन था जो हमारे मिलने के पहले से ही शायद हमारे बीच था बस हमें एक दूसरे को ढूँढऩा था जिसका माध्यम बनी हमारी एक प्यारी सी दोस्त मंजुला मायर गुप्ता जी ।

हमारे बीच, हमारे स्वभाव में, हमारी ज़िंदगी में कितना कुछ एक जैसा था… जो बस इत्तेफ़ाक था लेकिन बिलकुल अविश्वसनीय । दो अनजान लोगों के बीच इतना कुछ इतना एक जैसा कैसे हो सकता है? लेकिन यह मैंने कल ही जाना कि ऐसा सच में है और ऐसा हो सकता है । धन्यवाद ईश्वर का … एक बहुत प्यारी दोस्त से मिलवाने के लिए…

हमारी कुछ पंक्तियाँ एक-दूसरे के लिए छोटी छोटी कविताओं के रूप में

जिंदगी में 
कभी कभी 
कुछ लोग मिलते हैं 
मिलते ही अपने से लगते हैं 
उनसे रक्त सम्बन्ध नहीं होते  
पर मन के तार स्वयं ही जुड़ते हैं 
ऐसे लोग जन्मों के अपने लगते हैं
-manju

Manju, here is what your poem inspired:

A piece of you
A part of me
Reached out
To become whole
When we met…
Recognition
Of a bond
Forgotten
But alive
Rose from the heart
In a sweet moment of renewal.
~Jessi

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माना कि 
कोई तय शुदा 
ब्यौरा नहीं होता  
लिखा पढ़ा 
करार भी नहीं होता 
लेकिन फिर भी 
हर सुख की  
हर दुःख की 
एक उम्र तो होती है न …
सदा तो कोई नहीं रहता
तुम्हारे हिस्से का आसमान
तुम्हे भी जरूर मिलेगा एक दिन,
तुम, बस …
कहीं थक कर
हार मत जाना !

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तेरे सपनों की तलाशी में 

मेरी भी शिनाख्त हो जाएगी 

मिरे वजूद को पहचान लिया जायेगा 

तेरी धडक़नों की बेतरतीबी से 

यही तो इश्क है … 

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आज हिन्दी दिवस के अवसर पर सभी हिन्दी प्रेमियों को बहुत बहुत शुभकामनाएँ !

हमारे जैसे लोग जो जीवन के सफर में घूमते हुए परदेस में आकर बस तो गए हैं लेकिन अपनी भाषा और संस्कृ्ति से आज भी उतनी ही गहराई से जुड़े हए हैं । हमारे उसी हिन्दी प्रेम की अभिव्यक्ति स्वरूप कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं 

.

हम हिन्द देश के वासी हैं

और हिंदी अपनी भाषा है

हिंदी जन जन तक पहुंचाएं

बस इतनी सी अभिलाषा है  

**

अपनी भाषा और संस्कृति के

बल पर ही जाने जाएंगे 

हम  रहें कहीं भी दुनिया में

हिंदुस्तानी कहलायेंगे

**

सम्मान करेंगे पूरा हम…. 

दुनिया की हर भाषा का 

पर मान न कम होने देंगे हम 

तनिक कहीं निज भाषा का 

**

दुनिया की सारी धरती पर

हिंदी का परचम लहराएंगे 

हम  रहें कहीं भी दुनिया में

हिंदुस्तानी कहलायेंगे

-:-

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…. 

उठो

सीधी खड़ी हो

और खुद पर यकीन करो 

तुम किसी से कम नहीं हो 

तुम झूठे पौरुष के दंभ का शिकार 

जानवरों का शिकार तो

बिलकुल नहीं बनोगी

तुम जिंदगी में 

किसी से नहीं डरोगी ….

*** 

 

अपने

पैरों के नीचे की जमीन 

और सर के ऊपर का आसमान 

तुम खुद तलाश करोगी 

तुम्हे अपनी जिंदगी से जो चाहिए

उसके होने न होने की राह भी 

तुम खुद तय करोगी

तुम जिंदगी में 

किसी से नहीं डरोगी ….

***

 

रिश्तों का मोल 

तुम खूब पहचानती हो 

इनको निभाने का सलीका भी 

खूब जानती हो लेकिन 

तुम कमजोर नहीं हो

अपने स्वाभिमान की कीमत पर 

तुम कुछ नहीं सहोगी  

तुम जिंदगी में  

किसी से नहीं डरोगी ….

***

 

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.

एक बात कहें 

हमने ये जो ज़रा सा 

खुला आसमान देखा है न  

इसके लिए हमने 

बहुत जद्दोज़हद की है

वर्ना  तुमने तो 

पर उगने से पहले ही 

हमें जिबह करने में 

कोई कसर कहाँ छोड़ी थी

खैर

कोई बात नहीं 

बरसों से जमे ग्लेशियर 

अब पिघल गए हैं 

हमारे ऊपर की सब बर्फ 

बह गई है

धूप भी निकल आई है

हमारे परों में भी 

नई जान आई ही समझो 

ज़रा ठहरो 

फिर देखना हमारी परवाज़ 

हमारी मंज़िल आसमान है 

.

.

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.

बरस महीने दिन 

छोटे छोटे होते 

अदृश्य ही हो जाते हैं 

और मैं 

बैठी रहती हूँ 

अभी भी 

उनको उँगलियों पे 

गिनते हुए 

बार बार 

हिसाब लगाती हूँ 

मगर

जिन्दगी का गणित है कि

सही बैठता ही नहीं

.

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उधेड़ और बुन ….


यूँ तो जीवन में,  
बुनना, उधेड़ना 
और फिर बुनना 
चलता ही रहता है 
लेकिन सच कहो 
क्या फिर से 
टूटे हुए धागों को 
जोड़कर 
नया सा करना,  
बुनकर आकार देना
आसान होता है ?
…नहीं न ! 
तो क्यूँ नहीं 
सीख लेते नाजुक फंदों 
को सहेजना ताकि 
उधेड़ने की नौबत ही न आये 
और बरसों बरसों तक 
बनी रहे गरमाई 
रिश्तों के स्वेटर की 

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१. 

तोड़ लो

मगर  ख़ामोशी  से,

सितारों  के  फूल…

चाँद  न जागे

सन्नाटे का जादू  टूट  जायेगा

२.

ख़ामोश  सी फिजायें

चुप चुप  सा  है  समां

फ़िर भी रात

सन्नाटी   नहीं

चाँद का  साथ…..

३.

यूँ तो

ख़ामोश है रात

पर सन्नाटे का भी

अपना अलग राग है

सुनो तो कान देकर –

सुनाई देंगी

रात  की सिसकियाँ…..



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